देवप्रयाग (अलकनंदा और भागीरथी का संगम)
एक अद्वितीय और पवित्र स्थल है। देवप्रयाग (देव प्रयाग) उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित एक पवित्र स्थल है। यह अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ इन दो नदियों का मिलन होता है और यह मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं। यह स्थान हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है और यहाँ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अति प्राचीन है।
देवप्रयाग का इतिहास:
ऋषि देव शर्मा: हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, देवप्रयाग का नाम ऋषि देव शर्मा के नाम पर पड़ा है। उन्होंने यहाँ कठोर तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने यहाँ वास किया, जिससे इस स्थान को "देवप्रयाग" नाम मिला।
भगवान राम की तपस्या: यह माना जाता है कि भगवान राम ने यहाँ पर रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए तपस्या की थी। इस कारण यह स्थान तपस्या और आत्मशुद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
राजा दशरथ की तपस्या: देवप्रयाग का संबंध राजा दशरथ से भी है, जिन्होंने यहाँ पर पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या की थी।
रघुनाथजी मंदिर: यहाँ का रघुनाथजी मंदिर लगभग 10,000 साल पुराना माना जाता है और भगवान राम को समर्पित है। यह मंदिर यहाँ का प्रमुख धार्मिक स्थल है।
1803 का भूकंप: सन 1803 में यहाँ एक बड़े भूकंप ने देवप्रयाग को नष्ट कर दिया था, लेकिन बाद में इसे पुनः निर्मित किया गया।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:
पंच प्रयाग: देवप्रयाग पंच प्रयागों में से एक है, जहाँ अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम होता है और गंगा नदी का निर्माण होता है।
तीर्थ स्थल: यह चारधाम यात्रा के मार्ग में एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
प्राकृतिक सुंदरता: यहाँ की शांति और प्राकृतिक सुंदरता ध्यान और आध्यात्मिक साधना के लिए उपयुक्त है।
देवप्रयाग में दो नदियों का संगम होता है - अलकनंदा और भागीरथी।
अलकनंदा नदी: अलकनंदा नदी की कुल लंबाई लगभग 190 किलोमीटर है। यहसतोपंथ ग्लेशियर से निकलती है और कई तीर्थ स्थलों को पार करते हुए चमोली जिले से होकर बहती है। इसके प्रमुख संगम स्थानों में विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और अंतिम संगम देवप्रयाग शामिल हैं, जहाँ यह भागीरथी नदी से मिलती है और गंगा नदी का निर्माण करती है।
अलकनंदा नदी के प्रमुख संगम:
विष्णुप्रयाग - धौलीगंगा नदी का संगम।
नंदप्रयाग - नंदाकिनी नदी का संगम।
कर्णप्रयाग - पिंडर नदी का संगम।
रुद्रप्रयाग - मन्दाकिनी नदी का संगम।
देवप्रयाग - भागीरथी नदी का संगम।
अलकनंदा नदी चमोली से देवप्रयाग तक बहते हुए एक लंबी दूरी तय करती है और विभिन्न स्थानों पर अन्य नदियों से मिलती है, जो इसे धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।
भागीरथी नदी: भागीरथी नदी की लंबाई की बात करें तो यह गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है और देवप्रयाग तक बहते हुए विभिन्न स्थानों से गुजरती है। भागीरथी नदी गंगोत्री से लेकर देवप्रयाग तक लगभग 205 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
प्रमुख स्थान जहां से भागीरथी बहती है:
गंगोत्री: यहाँ से भागीरथी नदी का उद्गम होता है।
उत्तरकाशी: यह प्रमुख धार्मिक और तीर्थ स्थल है, जहाँ भागीरथी नदी का प्रवाह तेज होता है।
टिहरी: इस स्थान पर टिहरी बांध बना हुआ है, जो भागीरथी नदी पर है।
देवप्रयाग: यहाँ पर भागीरथी और अलकनंदा नदियों का संगम होता है, जिसके बाद यह गंगा नदी कहलाती है।
भागीरथी नदी का देवप्रयाग तक का मार्ग प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व से भरपूर है, जो इसे एक महत्वपूर्ण नदी बनाता है।
देवप्रयाग का यह संगम स्थल धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और शांतिपूर्ण वातावरण श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।

देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम से गंगा नदी का निर्माण होता है। इसके बाद गंगा नदी देवप्रयाग से ऋषिकेश और फिर हरिद्वार तक लगभग 96 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
यह मार्ग न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरणीय और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। ऋषिकेश और हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर कई प्रमुख तीर्थ स्थल और आश्रम स्थित हैं, जहाँ पर भक्त और पर्यटक विशेष रूप से गंगा आरती और स्नान के लिए आते हैं।
हरिद्वार से निकलने के बाद, गंगा नदी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल के राज्यों से होकर बहती है। इसके बाद, गंगा नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहाँ इसे पद्मा नदी के नाम से जाना जाता है और अंततः बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
गंगा नदी का प्रमुख मार्ग:
हरिद्वार, उत्तराखंड: यहाँ से गंगा नदी उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ती है।
उत्तर प्रदेश: गंगा नदी कानपुर, इलाहाबाद (प्रयागराज), वाराणसी और बलिया जैसे महत्वपूर्ण शहरों से होकर गुजरती है।
बिहार: यह नदी पटना और भागलपुर से होकर बहती है।
झारखंड: यह छोटा सा हिस्सा झारखंड से भी गुजरती है।
पश्चिम बंगाल: कोलकाता के पास हुगली नदी में बदल जाती है और फिर बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
बांग्लादेश: यहाँ इसे पद्मा नदी के नाम से जाना जाता है और यह अंततः समुद्र में मिलती है।